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स॒मा॒नो राजा॒ विभृ॑तः पुरु॒त्रा शये॑ श॒यासु॒ प्रयु॑तो॒ वनानु॑। अ॒न्या व॒त्सं भर॑ति॒ क्षेति॑ मा॒ता म॒हद्दे॒वाना॑मसुर॒त्वमेक॑म्॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

samāno rājā vibhṛtaḥ purutrā śaye śayāsu prayuto vanānu | anyā vatsam bharati kṣeti mātā mahad devānām asuratvam ekam ||

पद पाठ

स॒मा॒नः। राजा॑। विऽभृ॑तः। पु॒रु॒ऽत्रा। शये॑। श॒यासु॑। प्रऽयु॑तः। वना॑। अनु॑। अ॒न्या। व॒त्सम्। भर॑ति। क्षेति॑। मा॒ता। म॒हत्। दे॒वाना॑म्। अ॒सु॒र॒ऽत्वम्। एक॑म्॥

ऋग्वेद » मण्डल:3» सूक्त:55» मन्त्र:4 | अष्टक:3» अध्याय:3» वर्ग:28» मन्त्र:4 | मण्डल:3» अनुवाक:5» मन्त्र:4


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

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पदार्थान्वयभाषाः - हे मनुष्यो ! जिन (पुरुत्रा) प्राचीन काल से प्रसिद्ध (शयासु) शयन करें जिनमें बिजुली आदि पदार्थ उनमें (प्रयुतः) विभक्त हुआ फिर मिल गया (विभृतः) विशेष करके धारण किया गया (समानः) एक (राजा) प्रकाशमान सूर्य्य (शये) शयन करता है (वना) किरणों को सेवन करता है (अन्या) भिन्न त्रिगुण स्वरूप प्रकृति (माता) माता (वत्सम्) पुत्र को धारण करती है और सबको (क्षेति) वसाती है वह (देवानाम्) सूर्य्यादिक वा विद्वानों के मध्य में (महत्) सत्कार करने योग्य (एकम्) द्वितीय रहित (असुरत्वम्) दूर करता है दुःखों को जो उसका होना उसको आप लोग (अनु) शीघ्र जानिये ॥४॥
भावार्थभाषाः - हे मनुष्यो ! जिस करके प्रकाशित हुए सूर्य्य आदि प्रकाशित होते हैं, जो अव्यक्त अर्थात् प्रकृति में सबको उत्पन्न करके तथा धारण करके माता के सदृश रक्षा करता है और जो यथार्थवक्ता विद्वानों करके सत्कार करने योग्य है, उस ब्रह्म की आप लोग उपासना करो ॥४॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

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अन्वय:

हे मनुष्या यत्र पुरुत्रा शयासु प्रयुतो विभृतस्समानो राजा सूर्य्यः शये शेते वना सेवतेऽन्या माता वत्सं भरति सर्वं क्षेति तद्देवानां महदेकमसुरत्वं यूयमनु विजानीत ॥४॥

पदार्थान्वयभाषाः - (समानः) एकः (राजा) प्रकाशमानः (विभृतः) विशेषेण धृतः (पुरुत्रा) पूर्वासु (शये) (शयासु) शेरते यासु विद्युदादयः पदार्थाः तासु (प्रयुतः) विभक्तः सन् मिलितः (वना) किरणान् (अनु) सद्यः (अन्या) भिन्ना त्रिगुणात्मिका प्रकृतिः (वत्सम्) महत्तत्वादिकम् (भरति) धरति (क्षेति) निवासयति (माता) जननीव (महत्) पूजनीयम् (देवानाम्) सूर्य्यादीनां विदुषां वा मध्ये (असुरत्वम्) अस्यति प्रक्षिपति दूरीकरोति सर्वाणि दुःखानि तस्य भावम् (एकम्) अद्वितीयम् ॥४॥
भावार्थभाषाः - हे मनुष्या येन प्रकाशिताः सूर्य्यादयः प्रकाशन्ते योऽव्यक्ते सर्वमुत्पाद्य धृत्वा मातृवद्रक्षति यदाप्तानां विदुषां सत्कर्त्तव्यमस्ति तद्ब्रह्म यूयमुपाध्वम् ॥४॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - हे माणसांनो! ज्याच्यामुळे सूर्य प्रकाशित होतो. जो अव्यक्त अर्थात प्रकृतीमध्ये सर्वांना उत्पन्न करून धारण करतो व मातेप्रमाणे रक्षण करते व यथार्थवक्त्या विद्वानाकडून सत्कार करण्यायोग्य असतो, त्या ब्रह्माची तुम्ही उपासना करा. ॥ ४ ॥